किसी ने बड़े कमाल की बात कही है कि परमात्मा ने हमें आंखें दी दुनिया देखने के लिए । पर परमात्मा को देखने के लिए हमें आंखें बंद करनी पड़ती है।
इसी के साथ नमस्कार दोस्तों... आज की सुबह फिर एक नई कहानी लेकर आया हूं । उम्मीद करता हूं कि मेरे लिखी हुई कहानी आपके जीवन में कुछ बदलाव कर रही होंगी।
यह कहानी है एक राजा की । जो भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। राजा हमेशा भगवान का ध्यान अथवा पूजा पाठ करता रहता था। एक दिन भगवान खुश होकर राजा को दर्शन दिया। प्रभु का दर्शन पाकर राजा धन्य हो गया। उसने कहा -"प्रभु! आप साक्षात् पधारे..."!
भगवान ने कहा-" मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं..। बताओ... तुम्हें क्या चाहिए। क्या मांगना चाहते हो ।मांग लो..."?
राजा ने कहा -"भगवान ! मुझे कुछ नहीं चाहिए ।आपकी कृपा से राज्य में सब कुछ है ।अच्छा चल रहा है..... धन्य दान में संपन्न है राज्य... प्रजा खुश है..। सब अच्छा है। बस मन में एक इच्छा थी कि आपने आज मुझे दर्शन दे दिया । क्या आप मेरी पूरी प्रजा को दर्शन देंगे..? बहुत अच्छे लोग हैं मेरे राज्य के..."!
भगवान ने कहा-" नहीं... ऐसा नहीं हो सकता"।
राजा ने हाथ जोड़कर एवं गिड़-गिड़ाकर कहा-" कि आप आ ही गए हो तो मेरी इस इच्छा को पूर्ण कर दीजिए। मैं चाहता हूं कि प्रजा में जितने भी लोग हैं सब आपके दर्शन करें.."।
वह जिद पर अड़ गया । भगवान खड़े थे ।उन्होंने मुस्कुराकर कहा-" ठीक है ..। मैं तुम्हारे प्रजा से मिलूंगा ।ये जो आपके महल से दूर वह पहाड़ जो दिखाई देता है मैं उस पहाड़ से आपके सभी प्रजा को दर्शन दूंगा। कल तुम अपने सारे प्रजा को लेकर आ जाना"।
राजा ने कहा- ठीक है।
यह कहकर भगवान छूमंतर से गायब हो गए।
राजा ने मंत्री को बुलवाया और नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सुबह राजा के साथ चलना है ...भगवान के दर्शन करने"..।
अगले दिन सारी जनता महल के सामने इकट्ठा हो गए। सारे लोग जाने लगे ।बहुत लंबी लाइन और बहुत भीड़ थी।
महल के आगे निकले तो रास्ते में उन्हें तांबे के सिक्के के ढेर लगा हुआ मिला। जनता ने जब देखा कि तांबे के सिक्कों का ढेर लगा हुआ है तो आधे लोग भागे तांबे के सिक्कों को लेने। राजा बहुत ज्ञानी था। वह समझ गया कि वहां मात्र खेत हैं। उसने कहा लोगों से -"मत जाओ..! भगवान के दर्शन करने जाना है ...।कहां तुम लोग यह सब मोह माया में फस रहे हो"।
पर जनता उनकी बात को नहीं मानी। 50 % जनता उन तांबे के सिक्कों को उठाने चले गए।
अब बचे हुए जनता को राजा ने साथ लेकर आगे बढ़ा। राजा ने पीछे मुड़कर देखा तो अभी भी आधे लोग बचे हुए थे। राजा को लगा-" चलो ... ये लोग राज्य में पूजा पाठ करने वाले लोग हैं..। भगवान इन्हें दर्शन जरूर देंगे..."! यह सोचकर राजा जनता के साथ आगे बढ़ा।
कुछ दूर जाने के बाद उन्हें चांदी के सिक्कों का ढेर मिला। इस बार जो 40 % जनता थी । वह चांदी के सिक्कों को बटोरोने लगी।
राजा ने कहा -"यह क्या कर रहे हो ..?हमें भगवान के दर्शन करने जाना है..। भगवान बार-बार दर्शन नहीं देंगे"।
जनता ने कहा -"वह तो ठीक है। पर यह चांदी के सिक्के भी बार-बार नहीं मिलेंगे"।
आधे लोग वहां भी गायब हो गए। राजा ने पीछे पलट कर देखा तो अभी भी 10 % लोग बचे हुए थे ।जो उनके साथ चल रहे थे ।राजा को लगा -"चलो ! इतने तो लोग है मेरी राज्य में..... जो भगवान की पूजा पाठ करते हैं"।
राजा कुछ और दूर चले तो रास्ते में अब उन्हें सोने के सिक्कों का ढेर मिला। अब जो 10 परसेंट लोग बचे थे। वह सारे सोने के सिक्कों को भर भर कर घर ले जा रहे थे।
अब मात्र राजा और उनकी पत्नी बचे हुए थे। दोनों अब एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चल रहे थे और राजा कह रहा था कि-" देख रहे हो.... राज्य के सभी लोग मोह-माया में उलझ चुके हैं। भगवान के दर्शन करना... नहीं चाह रहे हैं "?
मैं ने भी हां में हां मिलाई और कहा-" आप ठीक कह रहे हैं"।
राजा और रानी दोनों थोड़ा सा आगे चले तो देखती है रानी की बहुत सुंदर हीरो का ढेर लगा हुआ है । अब रानी से भी नहीं रहा गया। रानी भी अब हीरे के पास चली गई और हीरे इकट्ठे करने लगी।
राजा अब अकेले चलने लगा। पूरे विरक्त मन से। उसे लगा क्या हो रहा है ...?
राजा पहुंचा उस पहाड़ पर। जहां भगवान का दर्शन मिलने वाला था। भगवान पहाड़ पर खड़े थे। राजा ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
भगवान ने कहा-" कहां है.. आपके प्रजा ... आपके प्रिय जन। जो आप चाहते थे कि मैं उन्हें दर्शन दूं"।
राजा ने शर्म से अपना सिर नीचे कर लिया और क्षमा मांगी।
भगवान ने कहा -"क्षमा मत मांगो...। मैं जानता था कि वे लोग नहीं आएंगे। मेरे पास वही आते हैं जो मेरे पास आना चाहते हैं। जो भौतिक चीजों में उलझे हुए हैं वह कभी भी प्रभु के दर्शन नहीं कर पाते"।