किसी ने बड़े ही कमाल की बात कही है कि इस धरती में कोई ऐसा इंसान नहीं जिसके पास समस्या नहीं...। और इस धरती पर कोई ऐसी समस्या नहीं जिसका समाधान नहीं है।
इसी के साथ नमस्कार दोस्तों... आज फिर एक नई कहानी लेकर आया हूं जो आपको कुछ नया सीख देगी..।
यह कहानी है एक भिक्षुक की। जो गांव-गांव जाकर भिक्षा मांगता था। और शाम के वक्त जंगल से लकड़ियां छांट कर लाता था और उन लकड़ियों से खाना पका कर खाता था। हर रोज का उसका यही क्रियाकलाप था । वह भिक्षुक गांव के बाहर एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहता था। एक दिन वह शाम के वक्त जंगल लकड़ियां लाने गया हुआ था, रोजाना की तरह ...। उस शाम उस भिक्षुक ने जंगल में कुछ ऐसा देखा जो इससे पहले उसने कभी नहीं देखा था । वह चौक गया। उसे ये चमत्कार लगने लगा। जंगल में एक लोमड़ी था जिसके पैर नहीं थे। और उसका शरीर हष्ट-पुष्ट था। वह सोचने लगा कि "ये लोमड़ी अभी तक जिंदा कैसे..? ये लोमड़ी चल-फिर नहीं सकती..! अभी तक किसी ने इसका शिकार क्यों नहीं किया..? और इसको भोजन कौन खिला रहा है यह कैसे जी रहा है ...."?
यह सोच ही रहा था कि जंगल में एक दहाड़ सुनाई दी। जंगल का राजा शेर आने वाला था । बंदर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूद रहे थे और सभी जानवर अपने को बचने के लिए इधर उधर भाग रहे थे । पूरे जंगल में डरावना सा माहौल था। भिक्षुक ने अपनी जान बचाने के लिए वह एक पेड़ पर चढ़ गया और देखने लगा कि नीचे क्या हो रहा है...।
जंगल का राजा शेर लोमड़ी के पास आ रहा था। सामने आने पर उसने देखा कि शेर के मुंह पर हिरण का बच्चा था। जो वह शिकार करके ला रहा था।
वह भिक्षुक सोच रहा था कि शेर ने हिरण के बच्चे को निपटा दिया है और अब इस लोमड़ी को भी मार के खा जाएगा ।
लेकिन जो हुआ... वह अलग था। वह शेर जब लोमड़ी के पास आया तो वह हिरण के बच्चे का एक मांस का टुकड़ा लोमड़ी के सामने डाल दिया। और वह लोमड़ी उस मांस के टुकड़ा को बड़े चाव से खाने लगा।
उस भिक्षुक के लिए यह सबसे बड़ा चमत्कार था कि शेर लोमड़ी को खाना खिला रहा था। भिक्षुक मन ही मन बुद-बुदाने लगा और ऊपर वाले को धन्यवाद कहने लगा कि" क्या बात है..! आपने हम सबको जिंदगी दी और जब आपने मुंह दे दिया तो निवाला भी आप ही देंगे.."।
फिर कुछ देर सोचने के बाद भिक्षुक को लगा कि यह सिर्फ आज ही हुआ है या रोजाना होता है। यही पता करने के लिए भिक्षुक शाम को पुनः पहुंचा और वह वही पेड़ पर चढ़कर लोमड़ी को देखने लगा। उस भिक्षुक के लिए फिर वही दृश्य बना। शेर आया। पूरे जंगल में डरावना सा माहौल बन गया। शेर शिकार करके लाया था और शेर ने पुनः लोमड़ी को एक मांस का टुकड़ा दिया और दोनों बैठकर खाने लगे।
भिक्षुक को यह देख कर यकीन हो गया कि ऊपर वाला इस दुनिया में है । और वह सबका ख्याल रखता है।
तो उसने अगले दिन से सोचा कि अब मुझे भी गांव में घर-घर जाकर भीख मांगने की आवश्यकता नहीं है। झोपड़ी में रहेंगे। ऊपर वाले ने हमें मुंह दिया है तो निवाला भी अवश्य देगा । यही सोचकर वह झोपड़ी में बैठ कर इंतजार करने लगा कि कोई तो आएगा और मुझे भिक्षा देकर जाएगा।
दस दिन बीत गए ..। ग्यारह दिन बीत गए ..। बारह दिन बीत गए .. पर उसे भिक्षा देने कोई नहीं आया।वहीं इसी जिद था कि भगवान मेरी भी मदद जरूर करेंगे....। इसी उम्मीद में वह चौदह दिन तक इंतजार करता रहा। वह बहुत दुबला-पतला हो गया था और अब वह इस हालत में भिक्षा मांगने जा भी नहीं सकता था। पन्द्रवें दिन वह भिक्षुक झोपड़ी के दरवाजे पर बैठा हुआ था। तभी उसके दरवाजे से एक बाबा गुजरे। भिक्षुक ने आवाज देकर बाबा को बुलाया और कहने लगा कि-" ऊपरवाला... वाकई में निर्दई है। बाबा जी आपको मालूम नहीं है ...जंगल में एक लोमड़ी है जिसके पैर नहीं है । और उसे... शेर रोजाना भोजन कराता है और जब वह शिकार करके लाता है तो उसमें से उसे हिस्सा भी देता है । और एक मैं हूं ....ऊपर वाले की तपस्या करता हूं और मेरा ख्याल कोई नहीं रखता है। पिछले 15 दिनों से मैं इस झोपड़ी में भूखा हूं और इंतजार कर रहा हूं कि कोई आएगा और लोमड़ी की तरह मेरी भी मदद करेगा। पर बाबा जी.. अभी तक कोई नहीं आया है "।
बाबा जी ने कहा कि-" मूर्ख हो तुम ..! अरे पगले इंसान..! ऊपरवाला तुझे लोमड़ी नहीं बनाना चाहता। वह तुम्हें शेर बनाना चाहता है। और तुम हो... कि लोमड़ी बनकर बैठे हो...! तू इस इंतजार में है कि कोई आकर तुझे खिलाएगा। तू शेर की तरह ताकतवर बन और दूसरों की भी मदद करें"।
दोस्तों.. ये छोटी-सी घटना हम सब के साथ होता है। हम कई बार उल्टा सोचने लगते हैं कि ऊपरवाला सब संभाल लेगा। पर ऐसा नहीं है ..! हमें अपना काम करना होगा। हमें शेर की तरह ताकतवर बनना होगा...।