:- मानवता का पाठ :-
दोस्तों , किसी ने बड़े ही कमाल की बात कही की खुद भूखा रहकर किसी को खिला कर तो देखिए और यू इंसानियत का फर्ज निभा कर देखिए।
इसी के साथ एक कहानी लेकर आया हूॅं-:
एक बार स्वामी विवेकानंद जी एक स्टेशन पर रुके हुए थे। जब आसपास के गांवों के लोगों को पता चला कि स्वामी विवेकानंद जी स्टेशन पर खड़े हैं तो वहाॅं धीरे धीरे भीड़ इकट्ठी होने लगी। लोगों ने स्वामी जी से विनती किई की- " स्वामी जी हमारे गांव में एक-दो दिन ठहरकर हमारी समस्याओं का समाधान बताइए। स्वामी जी ने उनकी विनती स्वीकार कर लिए।
उसके बाद लगातार दो दिनों तक स्वामी जी ने लोगों की समस्याओं का समाधान बताते रहें । परंतु इस बीच किसी भी व्यक्ति को ख्याल नहीं आया कि स्वामी जी से पूछ ले कि वह खाना खाए कि नहीं। सब अपनी समस्याओं का समाधान जानते और वहाॅं से चले जाते।
दूसरे दिन के रात में एक निर्धन व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें प्रणाम करके बोला- "स्वामी जी मैं दो दिनों से आपको लोगों से बात करते देख रहा हूं। पर मैंने इस बीच आपको कभी खाते-पीते नहीं देखा। मैं इससे बहुत दु:खी हूॅं। उस निर्धन व्यक्ति की बात सुनकर स्वामी विवेकानंद जी को बहुत प्रसन्नता हुई और कहा- "क्या तुम मुझे कुछ खाने को दोगे?"
निर्धन व्यक्ति स्वामीजी से बड़े ही विनम्रता से कहा- "स्वामीजी ! मैं तो एक सफाई कर्मचारी हूॅं। निम्न जाति का हूॅं। आपको अपनी बनाई रोटी कैसे दे सकता हूॅं ? यदि आप कहें तो मैं कुछ खरीदकर ला दूॅं।
स्वामी जी ने कहा- " नहीं! तुम मुझे अपनी बनाई रोटी ही दो। मैं तो तुम्हारे हाथ से बनी रोटी ही खाउॅंगा।"
उसके बाद स्वामीजी ने उस सफाई कर्मचारी के घर से बनी हुई रोटी-दाल बड़ी ही चाव से खाए।
अगले दिन जब गाॅंव वालों को पता चला कि स्वामीजी ने एक सफाई कर्मचारी के घर मैं खाना खाया है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और कहा- "आप कैसे संन्यासी है? आप एक निम्न वर्ग के घर के बने हुए भोजन को खाते है?
उन लोगों की बात सुनकर स्वामी जी ने कहा- "मैं दो दिनों से आपकी समस्याओं का समाधान कर रहा हूं पर आप लोगों में से किसी ने नहीं पूछा कि आप भोजन किए कि नहीं ! यह बात सुनकर लोगों को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उसके बाद फिर स्वामी जी ने कहा- "पर यह व्यक्ति सच्चे मन से मेरे पास आया। और उसने मुझसे भोजन के लिए पूछा। तो मैं उसे कैसे मना कर सकता था। सच कहूं तो इसने अपना मानव धर्म निभाया और तुम लोग अपनी समस्याओं तक ही सीमित रहे।
उसके बाद लोगों ने स्वामी जी से माफी मांगी और वहाॅं से चले गए।
दोस्तों कहानी बहुत छोटी है । पर इसका सार बहुत बड़ा है। दोस्तों कई बार ऐसा होता है कि लोगों का अपना काम हो जाने के बाद वे अपने मददगार को भूल जाते हैं।