उड़ान से पहले
ऐसा लग रहा था दोनों ही कुछ कहना चाहते थे, लेकिन उनकी जुबान खामोश थी। स्वाति के ओठ खुल रहे थे और बंद हो जा रही थे। देव एकटक स्वाति को देख रहा था। वातानुकूलित कमरे में भी उसके चेहरे पर पसीने छल छला जा रहे थे। सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। वह बार-बार कलाई घड़ी की तरफ चुपके से देख रहा था।
"कुछ ज्यादा परेशान लग रहे हैं आज?"स्वाति से उसकी मन:स्थिति छिपी नहीं रह सकी। वास चौक-सा गया।
"नहीं तो.... मैं नॉर्मल हूं ।तुम बताओ आज कैसा महसूस कर रही हो?
"एकदम ठीक। लेकिन बताइए देवजी ।मैं कब तक ठीक रह सकूंगी? क्या आप मुझे बचा सकेंगे?"निरीह की तरह कहा स्वाति ने।
" ऐसा क्यों सोचती हो स्वाति? तुम्हें स्वस्थ होना है। समय लगेगा ,लेकिन तुम पहले की तरह हो जाओगी यार!"इस झूठे दिलासे को सुनकर स्वाति के चेहरे पर मरियल सी मुस्कुराहट रेंगने लगी। देव भी जबरन मुस्कुराने लगा।
" मैं 1 घंटे में आ रहा हूं स्वाति!" हालांकि ,आना-जाना उसकी दिनचर्या हो गई है। जाना और वहां से खाना लाना जरूरी भी है, लेकिन देव को ऐसा कहने में काफी संकोच हुआ।
"अभी बैठीए न! आकाश का हाल बताया नहीं ,कैसा है? कब तक मेरे पास लाने लायक हो जाएगा?" स्वाति की आवाज में कंपन था। साफ जाहिर हो रहा था की इतना बोलने में उसे काफी जोर लगाना पड़ा है। स्वाति को इस तरह बोलते देखकर उसका कलेजा मुंह को आ जाता है। वह नहीं चाहती ,स्वाति ज्यादा बोले। लेकिन यह भी सच है कि उसकी बोली सुने बिना अकबका भी जाता है। अभी उसके बोलने पर कुछ जवाब ना देकर आंखों से कहने के लिए उसने बेचारीगी से स्वाति की तरफ इशारा किया और फिर गौर से स्वाति की काया देखने लगा- 2 गड्ढों में मिलमिलती आंखें ,हड्डी निकले गाल, बेतरह फुला हुआ पेट ,पीला हो आया चेहरा और चेहरे पर उदास मुस्कुराहट। जिसने पहले कभी नहीं देखा होगा स्वाति को वह तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि 7 महीने पहले वह भरी -पूरी जिस्म की गोरी, बहुत ही खूबसूरत महिला थी। बड़ी-बड़ी स्वप्निल आंखे, सुघड़ नाक -नक्श। कहां गुम हो गई वह स्वाति -जो बसंत के झोंके की तरह आती थी और धरती पर फूल ही फूल बिखर जाते थे। सारा घर खुशबू से महक उठता था।
स्वाति के चेहरे पर सिलवटें उभर आई हैं। मोटे ऑंसू गड्ढों में तैरते हुए गालों पर लुढ़क गए हैं। आकाश की याद आते ही हर बार यह हाल होता है। बेचैन हो जाती है स्वाति। 7 वर्ष का प्यारा लड़का अकाश 'हेपेटाइटिस बी' से ग्रस्त हो गया है। एक ही नर्सिंग होम में दोनों भर्ती है। सबसे नीचे तल्ले पर स्वाति और दूसरे तल्ले पर अकाश ।इधर स्वाति आंसू बहाती है आकाश के लिए ,उधर देव के आते ही आकाश 'मम्मी-मम्मी' की रट लगाता है ।लेकिन एक ही अस्पताल में रहने के बावजूद दोनों में से कोई एक -दूसरे से मिलने की स्थिति में नहीं हैं।देव कभी अकाश तो कभी स्वाति के पास दौड़ता रहता है और फिर खाना नाश्ता लाने घर जाता है।
" तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगी स्वाति!" अपनी भर्रायी आवाज पर काबू पाने की नाकाम कोशिश करते हुए देव ने कहा।
"हाॅं देव! आशावादी तो किसी को भी होना चाहिए और तुम तो इतने बड़े अंतरिक्ष वैज्ञानिक हो ।भारत के 1 से 10 के बीच तुम्हारी गिनती होती ती है ।तुम तो साफ पत्थर पर भी दूब उगाने की कल्पना करोगे ही" बोलते हुए उसकी हाॅंफ चढ़ गई ।चेहरा विकृत सा होने लगा। गर्दन और कनपटी की नसे तन गई।
"प्लीज स्वाति!" कहते हुए उसने स्वाति के मुंह पर एक हथेली रख दी और दूसरे से उसके बालों को सहलाने लगा।
" यह क्या हो गया देव?" निराश स्वर में पूछा स्वाति ने ।
"कुछ भी नहीं हुआ है ।सब ठीक हो जाएगा।" देव ने विश्वास के साथ कहा, लेकिन खुद सोचने लगा.... ओ माय गॉड! ऐसा कैसे हो गया? स्वाति के रहने, जीने ,खाने- पीने में एक अनुशासन था -हर चीज में सौंदर्य। कैसे हो गई उसे या परेशानी - एकदम बेकार हो गया है लिवर। लगभग लाइलाज हो चुकी उसकी बीमारी का एकमात्र उपाय है ट्रांसप्लांटेशन। भारत में लिवर ट्रांसप्लांट नहीं होता और इसके बिना कोई रास्ता नहीं। अमेरिका में ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा ,लेकिन वहां जाने की व्यवस्था करने में वह अभी तक नाकाम ही रहा। स्वाति को बीमारी की गंभीरता और अपनी परेशानी वह नहीं बताता, लेकिन क्या स्वाती गॅंवार है, अनपढ़ हैं?...सब कुछ समझती है स्वाति ।स्वाति को विश्वास हो गया है और वह अक्सर कहती भी रहती है कि वह कुछ दिनों की ही मेहमान है ।वह यह भी समझती है कि इलाज में सारे जमा स्वाहा हो गए। विभाग से लिया जाने वाला कर्ज सीमा पार कर चुका है। लगातार छुट्टी लेने से अब तनख्वाह पर भी आफत आ गई है। लेकिन वह यह नहीं जानती कि उसके सपनों का महल 'आकृति' के इलाज के लिए गिरवी रख दिया गया है।
आकृति के हश्र की जानकारी स्वाति को भले ना हो, लेकिन देव को मालूम है कि मोहल्ले की के ढेर सारे लोग जानते हैं ।सोहन मोहल्ले वालों की बात बताता है...
चोपड़ा कह रहे थे- 'आकृति' का नाम विकृति हो जाएगा ।गर्ग कह रहे थे- वैज्ञानिक साहब बहुत बनते थे। अब पता चलेगा उनकी औकात! आकृति तो नीलाम हो कर रहेगा -कल ही वीरेन जायसवाल कह रहे थे।
लेकिन तिवारी जी को दया आ रही थी-" भाई ,हमें उससे सहानुभूति है। विलक्षण प्रतिभा का वैज्ञानिक है ।इस देश को गर्व करना चाहिए। लेकिन यहां तो प्रतिभाओं की इज्जत नहीं होती। इसी कारण तो भारत से प्रतिभाओं का पलायन हो रहा है...."
सोचते हुए देव घर पहुंचा ।सोहन उसका इंतजार कर रहा था ।
"सोहन ...पानी दो सोहन।" सूखते कंठ को टटोलते हुए देव ने कहा। पानी पीकर वह अलमारी की तरफ बढ़ गया। अलमीरें में बेतरतीब पड़े कागज जमीन पर गिर पड़े। सामान- ढेर सारे सम्मानपत्रों -प्रशंसापत्रों का जमावड़ा। उपग्रहों और ना जाने कितने मिसाइलों के सफल प्रक्षेपण में उसके योगदान के जिंदा सबूत। उसे अपने आप पर गर्व होने लगा -तत्काल अजीब सी राहत महसूस हुई ।अमेरिकन स्पेस रिसर्च सेंटर से आए उस ऑफर को गौर से देखने लगा ।1 महीने में दो बार पत्र आए थे ।इसके लिए लोग तरसते हैं। श्याम रंजन ने, जो उसका कलिग है, इसके लिए कुछ उठा नहीं रखा। और देव ने उत्तर तक नहीं दिया -अपनी स्वीकृति नहीं भेजी। 4 माह पहले आए ऑफर को वह मान लेता तो स्वाति की बीमारी अब तक खत्म हो गई होती। लेकिन उससे ऐसा नहीं किया गया। अपने देश को ,यहां के लोगों को, यहां की मिट्टी और हवा को छोड़कर, यहां की समस्याओं से मुंह मोड़कर वह अपने व्यक्तिगत सुख के लिए विदेश चला जाए ?ना जाने कितने लोगों ने इस देश के लिए कुर्बानियां दी है और वह? लेकिन स्वाति की बीमारी, विभाग और सरकार का ठंडा रवैया- क्या हुआ इतना असहाय है? ऐसे में तो स्वाति ज्यादा दिन टिक नहीं सकेगी ।धीरे -धीरे एक अंधकार में विलीन होती स्वाति को कौन बचाएगा- और कैसे?
" चाय... चाय दो सोहन !"उसने जैसे अकबकाकर कहा।
"इन दिनों आप बहुत चाय पीने लगे हैं।"
"इससे तुम्हें क्या? मैंने कहा ना.. मुझे चाय चाहिए ।"उसने चीखकर कहा और सोहन आश्चर्य से उसका मुंह ताकने लगा।
"माफ कर दो सोहन भाई !मुझसे गलती हो गई।" सोहन के निरीह चेहरे की तरफ देखते हुए उसने कहा।
" सर !आप गलती कर ही नहीं सकते। आप मेरे अभिभावक हैं।" सोहन ने कहा और अपने बीते दिनों को याद करने लगा ।देव ने उसे सड़क से घर पहुंचाया है। उसकी पढ़ाई ,भरण -पोषण का जिम्मा अपने ऊपर लिया है। सोहन जिंदा है तो उसी के चलते...सोचते हुए सोहन की आंखें भर आई।
सोहन को गौर से देखते ही देखते वह कहीं और खो गया। अब उसकी तरफ से लापरवाह देव सोच रहा था, क्या स्वाति को वह नहीं बचा पाएगा? क्या सरकार के अलावा अमेरिका जाने के लिए रुपयों की व्यवस्था नहीं हो पाएगी? लीवर ट्रांसप्लांट तो होता है अमेरिका में। पासपोर्ट और वीजा की व्यवस्था जबरन कर दी है, उसके मित्र विक्रम ने ।उसे किसी तरह से रुपयों का जुगाड़ करना होगा। स्वाति कभी नहीं कहेगी इसके लिए ।बड़ी गंभीर और समझदार है स्वाति। किसी नसीब वाले को ही ऐसी पत्नी मिल सकती है । पिछले ऑफर को उसने अनसुना कर और अभी आए ऑफर को भी ठुकरा कर गलत कर रहा है।
देर तक वह अपने आपको बहलाने- फुसलाने और इस संकट से उबरने के लिए मंथन करता रहा।स्वाति की स्मृतियां उसके जेहन में चक्कर काटती रही ।
"कोई आया था सोहन ?" उसने जैसे जागते हुए पूछा।
"अभी अभी हम आ गए हैं।" एकाएक टपक पड़े अविनाश और श्याम रंजन। देव उनकी तरफ देखने लगा।
"यार देव !तुम तो बेकार ही इतना चिंतित हो ।आज तक तुमने कहा नहीं, शेयर नहीं किया। अगर तुम कहो तो मैं डॉक्टर शर्मा को कह दूंगा। वे मेरे नजदीकी रिश्तेदार है। नर्सिंग होम और इलाज का चार्ज कम कर देंगे ।....वैसे यह तो उनका बिजनेस है ।"आते-आते अविनाश ने एहसान जताते हुए । देव ने उसके चेहरे के भाव को पढ़ा, और बोला," नहीं ।डॉक्टर साहब के बिजनेस में कैसे दखल दोगे तुम?"
श्याम रंजन की आंखों में एक वहशी चमक उभरी। अविनाश और देव की तरफ देखते हुए कहने लगा हम भी यारों के यार हैं तुम भी क्या याद करोगे मेरे पास 400000 का एफडी है उसे एक खास मकसद से रखा था मैंने तुम उसके विरुद्ध लोन ले सकते हो इससे तुम्हारा काम हो जाएगा मैं समझ सकता हूं तुम्हें इसकी आवश्यकता है।"
"इसके लिए मुझे क्या करना होगा ?" बिना कुछ सोचे देव ने पूछा।
" कुछ नहीं ।बस, तुम अपने को नए स्पेस प्रोजेक्ट से विथड्रा कर लो, मैं वहां फिट हो जाऊंगा। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि तुम्हारी मन स्थिति अभी उसके लायक नहीं है ।"श्याम रंजन ने धमाका किया। धक से रह गया देव। उसे लगा कि एक बार फिर श्याम रंजन काचेहरा भयंकर और घिनौना होने लगा है ।आंखों में कौंध गया वह दृश्य। देव के द्वारा इंसैन्ट का प्रक्षेपण सफल हुआ था। उसे भारत का यंग एस्ट्रोनॉट का सम्मान दिया गया था। इस अवसर पर आठ-दस मित्र उसके घर बधाई देने आए थे ।वह मित्रों को मिठाई खिला रहा था। इसी बीच श्याम रंजन भी आ गया था। उसके हाथ में मिठाई की प्लेट दी गई थी। श्याम रंजन ने प्लेट टेबल पर रख दिया था- मिठाई को उसने छुआ तक नहीं।
" क्यों, तुमने लिया नहीं?" देव ने पूछा था।
"नहीं। आजकल मीठे से परहेज है- मेरा फिगर खराब हो रहा था ।"
"अरे भाई !आज खुशी का दिन है ।पूरा देश खुशी मना रहा है। सचमुच भारत के लिए यह गर्व की बात है ।देव ने इंसैट का प्रक्षेपण अपने ही देश में संभव करा दिया हैं । यह बहुत बड़ा कारनामा है। इसलिए तो आज यंग एस्ट्रोनॉट का प्रतिष्ठित सम्मान सरकार की तरफ से घोषित हुआ है ।देव जैसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों क योगदान है कि भारत एस्ट्रोनॉटिक्स के क्षेत्र में लगातार ऊंचाई की तरफ बढ़ रहा है।... लो भाई !खाओ मिठाई।" विक्रम ने कहा था और मिठाई की प्लेट जबरन उसे देने लगा था। श्याम रंजन ने बेरहमी से उसे परे कर दिया था।
मिठाईयां फर्श पर गिर गई थी। प्लेट चकनाचूर हो गया था ।उपस्थित मित्र अवाक्स थे।
" सम्मान !पुरस्कार !क्या औचित्य है इसका? आज इसकी विश्वसनीयता रह गई है क्या? मुझे तो इससे एलर्जी हो गई है। खैर ,देव की बात अलग है ।श्याम रंजन के स्वर में आक्रोश साफ झलक रहा था।
.... उस दिन वाला श्याम रंजन का रूप उसे याद आ गया। अभी वह गौर से श्याम रंजन को ही देख रहा था, और अविनाश मन ही मन इस स्थिति का मजा ले रहा था।अभी की बातों से अनजान विक्रम एकाएक वहां आ पहुंचा।
" अमेरिका के ऑफर के बारे में तुमने क्या सोचा?" विक्रम ने आते ही पूछ दिया।
" अभी ऐसी हालत में उसके बारे में क्या सोचना !" देव ने झट कह दिया और झुंझला उठा विक्रम ।
"तुम बात बना रहे हो देव! तुम्हारे पास एकमात्र विकल्प है तुम्हारा अमेरिका जाना। वहां भाभी का उचित इलाज भी होगा और कर्ज से मुक्ति भी। पर नहीं करोगे, क्योंकि तुम्हारा झूठा देश प्रेम तुम्हें रोक रहा है।"
" नहीं.... नहीं.... प्लीज! ऐसा ना कहो विक्रम!" देव ने अनुरोध किया।
" कहूंगा -लाख बार कहूंगा देख! क्योंकि तुम गलत सोच रहे हो! अब दुनिया की एक गांव के रूप में कल्पना की जा रही है। तुम जिस प्रेम की भावना से ग्रसित हो, वह आदर योग है। लेकिन तुम्हारी कल्पना वाला अपना देश कहां रह गया ?कृषि, उद्योग ,संस्कृति - किसी क्षेत्र में मनुष्यता कहीं दिखाई देती है तुम्हें, अपने सही रूप में? कहां है इनमें भारतीय बोध-देशज सौंदयर्य। तुम भारत में रहकर भी भारतीय नहीं रहे अब।कोई भारत में रहे या अमरीका में, क्या फर्क पड़ता है?" विक्रम भावावेश में बोलता जा रहा था । देव गौर से उसे बोलते हुए देख रहा था और उसके एक-एक शब्द उसके अंतस में पेवस्त हो रहे थे ।वह उसे देख सुन रहा था मानो विक्रम से उसे पहली बार सामना हुआ हो। देखते ही देखते वह गहरे चिंतन में डूब गया। विचारों की उठापटक होने लगी... यहां रहकर वह अपनी पत्नी और बेटे को तिल तिल कर मारने के सिवा क्या कर सकता है? क्या उन्हें मरता देखना चाहता है जबकि वह उसकी जान बचा सकता है! आकाश तो यहां ठीक हो जाएगा, लेकिन स्वाति का इलाज भारत में संभव नहीं। वह इलाज के नाम पर अपने आपको सांत्वना दें रहा है, अभी ।यह पत्नी के साथ और खुद के साथ भी धोखा है। आह! तीन माह हो गए आवेदन किए हुए। सरकार से विशेष सहायता नहीं दी गई । प्रधानमंत्री की अपील सुनकर जनता गदगद हो जाती है ,"भारतीय वैज्ञानिक देश हित में विदेश में लौट आऍं।यहां के वैज्ञानिक विदेश ना जाऍं।"
एकदम बकवास! क्या यहां रहकर घुटता रहे.... आत्महत्या की स्थिति तक पहुंच जाए। यह तो देखी हुई बात है कि देश प्रेम की भावना से लौट आए वैज्ञानिक पछता रहे हैं। मिसाइल तकनीक के अग्रणी वैज्ञानिक अभी भी अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत युवा वैज्ञानिक पाठक जी ट्यूशन से गुजारा कर रहे हैं ।कहां है माहौल- कहां है सुविधा.... मुझे अमेरिका जाने से रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है? और तो और ,इलाज के लिए सहयोग नहीं मिल रहा है ।ऐसे में मेरी प्रतिभा कुंद हो जाएगी ।कुछ नया नहीं सोच सकूंगा मैं। परेशानियाॅं घुन की तरह लग गई है और खोखला कर देंगी ।...अमेरिका जाने से मैं देशद्रोही नहीं हो जाऊंगा ।देश प्रेम की मेरी भावना जीवित रहेगी। मैं माहौल का लाभ उठाकर अमेरिका में बहुत कुछ कर सकता हूं ....जो मानवजाति के लिए कल्याणकारी साबित हो सकता है। बहुत सारी संभावनाऍं छिपी है, अभी, उन्हें उजागर करना है। लोग हाथों हाथ उठा लेंगे मुझे ....सोचते-सोचते उलझनों से पार एक सांप संसार उसे नजर आने लगा ।उसकी आंखों में एक चमक से पैदा हुई।
"विक्रम ! तुम्हारी सोच सही है। मैं अब अपनी इस स्थिति को बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं जानबूझकर अपने परिवार की हत्या नहीं कर सकता। तुम बिल्कुल सही कहे रहे हो । मैं अपनी स्वीकृति आज ही अमेरिका भेज रहा हूं। वही नौकरी करूंगा... खोज और अन्वेषण करूंगा। बस ,यही समझ लो कि मैं अमेरिका की नागरिकता प्राप्त कर लूंगा।" देव ने एक ही सांस में कहा और तेजी से दूसरे कमरे में चला गया, और फिर फार्म लेकर उनके पास वापस आया ।फार्म भरकर ही उसने सिर ऊपर उठाया।
.... यह सब कुछ देख -सुनकर अविनाश को कठमुरकी मार गई थी। श्याम रंजन अपने स्याह ्् हो आए चेहरे को छिपाने के फेर में खिसियानी हंसी हंस रहा था और विक्रम का चेहरा खिल गया था। अविनाश और श्याम रंजन देखते ही देखते गायब हो गए ।विक्रम देर तक उसके पास बैठा बातें करता रहा।
विक्रम के जाने के बाद वह फिर अकेला महसूस करने लगा और उसे अजीब तरह की बेचैनी होने लगी ।लग रहा था, उसने बहुत बड़ा ना माफ करने वाला अपराध कर दिया है- अपनी धरती से, अपनी मिट्टी से, देश के लोगों से, खेत- खलिहानों से। अपनी मातृभूमि से वह नाता तोड़ रहा है। कुछ दिनों में वह यहां से सदा सदा के लिए विदा हो जाएगा... पराया हो जाएगा- प्रवासी भारतीय सोचते हुए एकाएक स्वाति और आकाश का दिन -हीन हो आया चेहरा सामने आ गया ।उसके अंदर खलबली सी होने लगी। सारी चीजें घूमती हुई बवंडर की तरह लगने लगी। सिर में जोरों का दर्द उठा और सारे बदन में चिनचिनी- सी होने लगी। बेचैनी की स्थिति में गश आने से अपने आप को संभालते हुए वह फोन के पास बढ़ने लगा।
" नहीं.. कभी नहीं.. मैं अमेरिका नौकरी करने नहीं जाऊंगा ...लेकिन स्वाति का इलाज होगा.. अमेरिका में ही होगा स्वाति का इलाज ...वह अपने आपसे ही बातें करने लगा, और इसी बीच उसने फोन उठाकर नंबर डायल किया।
".... हाॅं ,नमस्कार जायसवाल बाबू! मैं देव बोल रहा हूॅं!"
"कहिए... देव साहब!"
" कहना यही है की 'आकृति' आपके नाम करने की औपचारिकता मैं आज से कल तक में पूरी कर लेना चाहता हूॅं। कीमत मैंने आपको बता दी है ।"
"देव साहब! इसमें मुझे नुकसान नहीं है। लेकिन आपके लिए कह रहा हूं... एकाएक इतना बड़ा निर्णय आप क्यों ले रहे हैं ?"
"हाॅं, ऐसी ही बात है ।पत्नी के इलाज के लिए मैं अमेरिका जा रहा हूं ।आप कल ही ड्रॉप्ड बना ले पूरी रकम का। हाॅं, अपने वकील को भी कृपया आप बुलवा लें।"
"ठीक है देव साहब! मैं वकील को बुला लेता हूं... आप आ जाइए।"
" बहुत-बहुत धन्यवाद जायसवाल साहब! मैं तुरंत आपके पास आ रहा हूं।"
...फोन रखकर देव में एक लंबी जम्भाई ली और उसे लगा स्वाति की वही खूबसूरती काया सामने खड़ी है और झरने जैसी हंसी से या कमरा , यह शहर और यह देश गूॅंज रहा है।