होश में आने पर ओबर्लिन ने देखा कि एक गरीब किसान उसकी सेवा में जुड़ा हुआ है ।उसने किसान से कहा कि वह उसकी सेवा करने के एवज में उसे इनाम देगा। उसने किसान से उसका नाम जानना चाहा। यह सुनकर किसान मुस्कुराया और बोला ,"मित्र ! बताओ, बाइबिल में कहीं किसी परोपकारी का नाम लिखा है। नहीं ना । तो फिर मुझे भी अनाम ही रहने दो । आप भी तो नि:स्वार्थ सेवा में विश्वास रखते हो। मुझे इनाम का लालच क्यों दे रहे हो ?वैसे भी पुरस्कार का लालच किसी को भी नि:स्वार्थ सेवा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। सेवा की भावना तो हमारे अंदर से उत्पन्न होती है ।इसे ना ही पैदा किया जा सकता है और ना ही मिटाया जा सकता है।"ओबरलिन उस निर्धन किसान की बातें सुनकर दंग रह गया ।वह मन ही मन सोचने लगा कि आज उसे इस किसान ने एक पाठ पढ़ाया है। सेवा जैसा भाव तो अनमोल है ।उसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है। सेवा के लिए कोई भी पुरस्कार अधूरा है। यह किसान कितना महान है जो बिना किसी स्वार्थ के परोपकार करने में विश्वास करता है। आज कितने ऐसे लोग हैं जो इस निर्धन किसान की परोपकार की भावना का मुकाबला कर सकते हैं ।ओबरलिन को इस बात के लिए अफसोस हुआ कि उसने किसान को इनाम देने की बात कही । ओबरलिन ने किसान से कहा अगर आपके जैसे इंसान हर जगह हो तो कहीं पर दुराचार शेष नहीं रहेगा।"
सेवा भावना
January 06, 2023
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जर्मनी के महान समाजसेवी ओबरलिन एक बार अपनी यात्रा के दौरान मुसीबतों से गिर गया। तेज आंधी- तूफान और ओलों ने उसे बुरी तरह परेशान कर दिया। वह मदद के लिए चिल्लाता रहा। सबको अपनी जान बचाने की पड़ी थी सो उसकी पुकार कौन सुनता? वह बेहोशी की हालत में नीचे गिर पड़ा। कुछ देर बाद उसे एहसास हुआ कि किसी व्यक्ति ने उसे थामा हुआ है और उसे सुरक्षित जगह पर ले जाने की कोशिश कर रहा है।
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