एक दिन उन्होंने शिष्य को भेजकर मोची को बुलाया और कहा -"भाई तुम तो अच्छा गाते हो। मेरा रोग बड़े-बड़े वैद्यों के इलाज से ठीक नहीं हो रहा था। तुम्हारे भजन सुनकर मैं ठीक होने लगा हूं ।"उन्होंने उसे ₹100 देते हुए कहा," तुम इसी तरह गाते रहना।"
रुपए पाकर जूते गांठने वाला बहुत खुश हुआ लेकिन पैसा पाने के बाद उसका मन कामकाज से हटने लगा।वह भजन गाना भूल गया। दिन-रात यही सोचने लगा कि रुपयें कहां संभाल कर रखे? काम में लापरवाही के कारण धीरे-धीरे उसकी दुकानदारी चौपट होने लगी।
उधर भजन बंद होने से पंडित जी का ध्यान फिर रोग की तरफ जाने लगा ।उनकी हालत फिर बिगड़ने लगी। एक दिन अचानक जूते गांठने वाला पंडित जी के पास पहुंच कर बोला," आप अपना पैसा रख लीजिए।"
पंडित जी ने पूछा," क्यों, क्या किसी ने कुछ कहा है?"
जूते गांठने वाला बोला," कहा तो नहीं लेकिन इस पैसे को अपने पास रखूंगा तो आपकी तरह मैं भी बिस्तर पकड़ लूंगा। इसी रूपए में मेरा जीना हराम कर दिया। मेरा गाना भी छूट गया। कामकाज ठप्प हो गया ।मैं समझ गया कि अपनी मेहनत की कमाई में जो सुख है, वह पराए धन में नहीं हैं। आपके धन ने तो परमात्मा से भी नाता तूड़वा दिया।"
:- मनोज पब्लिकेशंस के द्वारा