कठफोड़वा
कार्यालय में कार्यों की अधिकता से आज भी विलंब हो गया। रास्ते में ही शाम गहराने लगी है। अब तक कठफोड़वा अपना काम करके वहां से चला गया होगा। उसे बार-बार देखते सुनते रहने की इच्छा रविवार को ही पूरा हो पाती, कभी-कभी छुट्टियों में भी । लेकिन चाहने से क्या फर्क पड़ता है ! हो तो वही रहा है जो वह नहीं चाहता, नहीं सोचता- ऑटो में बैठा , जल्दी घर पहुंचने की कल्पना करता , वह सोच रहा था।
आज कार्यालय में साथियों से हुई अशोभनीय और अप्रत्याशित बहस के बाद आघात से वह उबर नहीं सका है। उसने बात छेड़कर कोई अपराध तो नहीं किया था। रोज ही केंद्र के महामंत्री इसके लिए लानत भेज रहे हैं , ताने दे रहे हैं । जिला मुख्यालय और मुफ्फसिल के कर्मचारी कर्तव्य को याद दिला रहे हैं । चारों तरफ से उम्मीद और अपेक्षा, जो बिलकुल स्वाभाविक भी है। और जिला स्तर पर उसके चाहने के बावजूद चुप्पी, पूरी तरह भीतरमार का शिकार है वह। ऊबकर ही आज वह भभक पड़ा था, साथियों ! तुम जिस संस्था में काम कर रहे हो, उसका प्रबंधन जड़ को ही हटाने पर उतारू है, जिसके फल-फूल से हजारों लोगों की रोजी-रोटी चलती है, प्रबंधन को इसकी चिंता नहीं । उसकी पूंजी और श्रम तो लगा नहीं, तो फिर मोह-ममता कैसी ? वह तो सरकारी एम.डी है और लगभग हर सरकारी एम.डी की तरह लूटकर घर ले जाना ही उसका संस्कार है- संस्कृति है । वह भला क्यों करे लूटने से परहेज- खुल्लम-खुल्ला लूट रहा है । कमीशन, रिश्वत लेने और हेरा-फेरी करने में वह इस बात को भूल जा रहा है कि इससे संस्था पर क्या असर पड़ेगा। संस्था में गिरावट आई है, घाटे में चल रही है, झूठे आंकड़े सरकार के सामने पेश किए जा रहे हैं, इस एम.डी के आने से लग यही रहा है कि अगर अगले वित्तीय वर्ष तक यहां रह गया तो संस्थान में ताला लग जाने में आश्चर्य नहीं। 3 वर्ष पूरे होने पर कुछ डरपोक और अवश किस्म के सही लोगों को गलतफहमी थी कि दिसंबर तक उसका तबादला हो जाएगा- खत्म हो जाएगी कोढ़। लेकिन एम.डी ने पुख्ता इंतजाम कर लिया है ।दो लाख नगद और लगभग 50000 का समान मंत्री को देकर अपना स्थानांतरण रुकवा लिया है । साथी ! अब चुप रहकर तुम अपराध कर रहे हो - आंदोलन जरूरी है अब........ कुछ यही बातें से उसने की थी। इस पर भड़क उठे थे जिला यूनियन के महासचिव अविरामजी, " अकेले मैं और आप क्या कर लेंगे ? आपके साथी ही ही एम.डी के चमचागिरी कर रहे हैं, वे ही गलत का विरोध करनेवाले जुझारू साथियों का प्रबंधन द्वारा परेशान करवा रहे हैं।"
" तो यूनियन के पदाधिकारी होकर भी हम चुप रहें, देखते रहे सबकुछ?" उसने टोका था।
" यशवंतजी। आप कुछ नहीं कर सकते हैं- सिवाय अपनी नौकरी गंवाने और अपमानित होने के। ऐसा ही समय है- यही लोगों की सोच है । "
लंबी बहस शुरू हो गई थी और अंततः थका-थका निराश घर जा रहा था यशवंत ।
तीन दिन पहले उस अखबार के दफ्तर से वह आक्रोश लिए घर आया था। अखबार में काम करनेवाले उसके मित्र शेखरजी बता रहे थे, " हम लोगों की स्थिति आम दिहाड़ी मजदूरों से भी बदतर है - केवल फोकस है ऊपर से । कुआं खोदो और पानी पियो, शरीर को झोंककर विज्ञापन और भड़कीले समाचार लाओ तब खाओ, वरना भूखे प्यासे रहना होगा। कन्ट्रैक्ट पर हो गए हैं यहां के कार्मिक- उसके लिए बाध्य किए गए हैं,मोटी तनख्वाह का चमकदार लोभ देकर।अब भी.आर.एस की नोटिस मिल गई है और कल निश्चित रूप से सी.आर.एस का सामना करना होगा।"
यूनियन तो तगड़ी है आप लोगों की।" उसने पूछा था।
" थी कभी। अब यहां के यूनियन पदाधिकारी बिक गए हैं। चमचागिरी में लगे हैं। उन्हें बी.आर.एस की नोटिस नहीं दी गई है।"
अखबार के कार्मिकों की दयनीय स्थिति पर सोचते हुए वह पहले से ही परेशान था और आज यह बहस। इस बहस से कुछ सकारात्मक परिणाम नहीं हुआ। उल्टे मुंह फुलौवल की स्थिति बन गई।
घर पहुंच कर आज भी कठफोड़वा को नहीं देख सकेगा वह। बड़ा सुकून मिलता है उसे देखकर । अंदर ही अंदर वह मजबूत और दृढ़ हो जाता है। एक माह से ऊपर हो गए हैं ।बगल वाले ताड़ के लंबे पेड़ पर एक कठफोड़वा रोज ही ठक-ठक का संगीत सुनाता है। पहले तो आई गई बात की तरह उसने लिया, फिर उस ठक-ठक में उसे एक लय-रिदम और अनोखा सौंदर्य दिखाई पड़ने लगा। कठफोड़वा की योजना लंबी लग रही है। उसका श्रम लगातार जारी है। अब तक उसने ताड़ में बहुत बड़ा छेद कर दिया है। निश्चित रूप से बरसात से पहले अपने तंदुरुस्त और सुरक्षित आवास की पुख्ता व्यवस्था कर लेना चाहता है । नर ही नहीं मादा कठफोड़वा का योगदान योगदान भी महत्वपूर्ण है । उनकी अद्भुत प्रेम देखकर भाव-विभोर हो जाता है वह। नर दिन भर बिना रुके अपनी लंबी चोंच से ताड़ के ऊपर भाग पर, जो डाल और पत्तों से ठीक नीचे है ,वार करता है।
कभी-कभी उसके साथी फुदकते हुए आते हैं और कुछ पल ठहरकर चले जाते हैं । कठफोड़वा क्यों ठक-ठक उसके घर में चर्चा और कलह का कारण बन गई है। 14 वर्ष के अमित और 10 वर्ष के आकाश को पान दुकान की बसुरी टेप की आवाज से अपनी टी.वी के शोर में ठक-ठक से अवरोध महसूस होता है। कई बार उन दोनों ने कठफोड़वा पर पत्थर के टुकड़े फेंके हैं। लेकिन कठफोड़वा का दृढ़ निश्चय , कठोर श्रमसाधना और ताड़ की ऊंचाई उसकी बेटों को हतोत्साहित करती रही है। कभी पत्थर की आहट से कठफोड़वा उड़ भी गया, तो तुरंत लौटकर फिर अपने कार्य में लग गया । और अब उसकी तरफ से सख्त आगाह किया गया है - "कोई भी कठफोड़वा पर पत्थर नहीं फेंकेगा। अगर मैं जान गया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" इसी बात पर पत्नी से भी चक-चक हो गई है कई बार। अक्सर पत्नी कहती है, " न शक्ल-सूरत ,न रंग और ना मीठी आवाज, कहीं से सुंदरता नहीं- आकर्षण नहीं कठफोड़वा में । आप कठफोड़वा के लिए बेटों को डाॅंटते हैं? अजीब बात है यह।"
" मधु! कठफोड़वा की खूबसूरती को नहीं पहचान रही हो तुम । और बच्चों को मेरे द्वारा डाॅंटने पर तुम्हें बुरा लग गया? लेकिन उनकी पढ़ाई ,ट्यूटर के टास्क, स्कूल टास्क को पूरा नहीं करने पर जो तुम मुझसे शिकायत करती हो, खुद भी उसके चलते परेशान और चिंतित रहती हो- वह क्या है?" एक बार उसने पत्नी को सच अहसास दिलाया था।
और उस दिन रविवार को जब वह घर पर था , काम करती हुई पत्नी को चाय के बहाने लाॅन में बुलाकर सामने की कुर्सी पर बैठने को कहा था। चाय की चुस्कियों के बीच उसने कहा था- " मधु ! देख रही हो ना! कितनी लगन है , किस तरह की एकाग्रता है, कैसी मेहनत कर रहा है वह कठफोड़वा । बताओ, ताड़ के पेड़ कितना कठोर होता है । लेकिन उसकी श्रम साधना और दृढ़ निश्चय का ही परिणाम है कि वह सफल हो रहा है। कितना बड़ा गड्ढा कर दिया है उसने !"
"आप तो आलतू-फालतू ही सोचते हैं । आपको तो और कोई काम नहीं । मुझे यह सब देखने की फुर्सत कहाॅं? घर में कितना काम पड़ा है।" मधु ने जवाब दिया।
" अरे यार, सब काम होगा। लेकिन पहले यह देखो, कठोर मेहनत करते हुए कठफोड़वा कितना सुंदर लग रहा है । यही है सृजन का सौंदर्य, कठोर इच्छाशक्ति का नमूना । वाह ! कितना उत्सव है उसमें । निश्चित रूप से उसके शरीर में पसीना आ रहे होंगे , कंठ सूख गए होंगे, चोंच थक्कर शिथिल पड़ गए होंगे... लेकिन वह रुक नहीं रहा है।"
एकाएक कठफोड़वा चोंच मारना छोड़कर उनकी तरफ देखने लगा।
" देखिए! आपकी बात सुन गया वह। इधर ही तक रहा है।"
"नहीं मधु! गौर से देखो, अब वह किधर देख रहा है। उसकी आंखों में बेचैनी है अभी। शाम होने को है। अब उसकी मधु आने ही वाली है । थोड़ी देर और रुक जाओ मधु! देख लो तुम अपनी आंखों से, वह मधु तुमसे बीस है या उन्नीस।" यशवंत ने कहा।
देखते ही देखते मादा कठफोड़वा उड़ती हुई नर कठफोड़वा के पास आ गई। नर ने मादा को इशारे से और अपनी बोली से भी कुछ कहा। मादा गड्ढे की तरफ देखने लगी। फिर देखते ही देखते दोनों नाचने-से लगे।
यशवंत चहक गया और मधु का हाथ दबाकर उसे देखते रहने का इशारा किया । मादा दिनभर चुने दानों को नर के चोंच में देने लगी थी। एक दाना खाकर दोनों नाचने से लगते , फिर चोंच मिल जाती। देर तक यह सब कुछ चलता रहा। दाने खत्म हो गए शायद। परम संतुष्टि के बाद भी उनकी चोंच मिली रही। कभी अलग होती तो उनकी बोली सुनाई पड़ती और कुछ क्षण का नृत्य भी।फिर चोंच मिल जाती।
उसने देखा, आज पहली बार मधु का चेहरा कठफोड़वा के जोड़े को देखकर खिल सा गया। भाव-विभोर मधु उन्हें देखती रही।
" बताओ मधु! बीस कौन है? किसका प्यार ज्यादा गहरा हैं -तुम्हारा या उसका? " सुनकर चौक सी गई मधु और फिर हंसती हुई उसके कंधे पर अपना सिर टिका दिया ।
शाम गहराने लगी थी और कठफोड़वा का जोड़ा आंखों से ओझल होने लगा था। वे भी घर में चले गए।
एकाएक ऑटो रुक गया। उसकी लंबी सोच का क्रम भंग हुआ । सामने आती मोटरसाइकिल पर सवार तीनों लड़कों ने ऑटो को आगे से घेर लिया और ऑटो के तीनों सवारियों की ओर रिवाल्वर तान दिया। उसमें एक ने कड़ककर कहा, "जल्दी अपना पैसा और सामान दे दो। देर करोगे तो जान चली जाएगी।"
उसके ठीक बगल में बैठा बूढ़ा आदमी काॅंपते हाथों से सामान देते हुए कलप रहा था- मेरी बेटी की शादी है। कर्ज लेकर मैंने गहने खरीदे हैं। दोबारा गहने में कैसे खरीदूंगा?"
बूढ़े के बाद वाले अधेड़ ने अपना झोला उन्हें सौंप दिया, जिसमें दो साड़ियाॅं और बच्चों के कपड़े थे। अब बारी उसकी थी और उसके पास जूठा टिफिन कैरियर पुराने बैग में था और जेब में तीस-रूपये। उसने भी वह सब उनको दे दिया। क्रोध से काॅंपता लड़का उस पर झापड़ चला बैठा," साला दस-बीस रुपये लेकर चलता हैं!"
बवंडर की तरह आया यह हादसा कुछ क्षण में ही गुजर गया। वे लोग मोटरसाइकिल पर सवार होकर चले गए। ऑटो का ड्राइवर कातार दृष्टि से उन्हें देखते हुए कह रहा था -"चलिए, बैठिए । किराए की चिंता नहीं कीजिए -"मुझे नहीं चाहिए । मैं आप लोगों को स्टेशन तक पहुंचा देता हूं ।" ड्राइवर की बात सुनकर थोड़ी सी सुगबुगाहट हुई, किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन ऑटो में बैठ गए। ऑटो बढ़ने लगा।
क्या सोचता आ रहा था और एकाएक क्या घटित हो गया । आक्रोश , अपमान, पराजय से खिन्न और पूरी तरह हताश वह घर पहुंच पहुंचा।
आश्चर्य ! टी.वी वाले कमरे से आज शोर नहीं आ रहा था। सुबुद्धि जगी है लड़कों में -"शायद पढ़ रहे हैं आज। सोचकर उसे क्षण के लिए सुकून मिला। परदे से झांककर उसने देखा - टी.वी स्क्रीन पर ढेर सारी लड़कियाॅं अश्लीलता और विभत्सता का धत्ता बताती हुई लड़कों से नए जमाने की मोहब्बत का इजहार कर रही थी । वह धक्- से रह गया। कमरे के अंदर कदम रखते ही दुर्तगति से चैनल बदल गया । बदले हुए चैनल पर अधनंगी लड़कियाॅं अपने नए डिजाइन के पोशाक का प्रदर्शन कर रही थी। अमित और आकाश पर उसकी नजर गई। कुछ देर पहले टी.वी की लय में खोए अमित और आकाश का चेहरा उड़-सा गया। अकाश ने फिर बदल दिया चैनल- 'आज तक' में समाचार होने लगा।
उसका बदन काॅंपने लगा था, आंखें जलने लगी थी और चेहरा विकृत सा हो गया था । दोनों बेटे उसकी स्थिति को देखकर आवाक् थे।
" क्या बात है ?"मधु ने आते ही आश्चर्य से पूछा।
" तुम लोग जाओ यहाॅं से -कम से कम इन नालायकों को अभी मेरी नजर से दूर रखो ।" उसने जोर से चीखते हुए कहा। रात को ना तो उसने खाना खाया और ना सो सका ।सारी रात बौखलाहट छाई रही।
सुबह हुई, दोपहर आया और शाम ढलने लगी। दिन बीतते गए । अखबार के वैसे लोगों की छॅंटनी हो गई जो प्रबंधन की गलत नीतियों का विरोध करते थे । कुछ को बी.आर.सी कुछ को सी.आर.एस.। उसकी संस्था की स्थिति बद से बदतर होती गई और एम.डी. तथा उनके दलालों का घर आबाद होता रहा।
उस दिन रविवार को अपने लाॅन में बैठा एकाएक वह चौंक गया। सैकड़ों रंग-बिरंगे तोते कठफोड़वा के जोड़े पर पिल पड़े थे। कुछ ही क्षणों में तोतों ने उनके बसाए घोसले को फेंक दिया। कई अंडे जमीन पर गिरकर चूर हो गए । दोनों कठफोड़वा चीख रहे थे-" विरोध कर रहे थे ,लेकिन तोतों पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ रहा था।
देखते ही देखते वह बौखला-सा गया । वह लाॅन के पत्थरों को चुन-चुनकर उनपर फेंकने लगा। परिणाम यह हुआ कि तोते कुछ देर के लिए इधर-उधर होते ,फिर कठफोड़वा को घेरकर चोंच मारने लगते। नर-मादा कठफोड़वा तोतों से सीधा मुकाबला कर रहे थे, लेकिन तोतों की संख्या बहुत ज्यादा थी।
उसने भी हार नहीं मानी । दूर-दूर तक पत्थर लगातार फेंकता रहा, लेकिन घायल कठफोड़वा का जोड़ा पस्त होकर नीचे गिर गया। फिर नीचे से उड़कर दोनों कहीं और चले गए । तोते उत्साह से नाचने लगे। देर तक उनका नृत्य और संगीत जारी ही रहा।
उससे देखा नहीं गया । आज रात को बह सो नहीं सका। अगली सुबह उसने देखा- रात भर वर्षा-पानी में भीगता कठफोड़वा का जोड़ा ताड़ के पेड़ की जड़ के पास दुबकर बैठा था । उनकी आंखों से आंसू गिर रहे थे। रह-रहकर वे अपने उजड़े घर को देख रहे थे। ऊपर उसकी नजर गई। तोते चहकते हुए घोंसले से निकलकर आकाश की सैर करने निकल पड़े थे।
दोपहर तक बादल बिखर चुके थे । नरम पीली धूप निकल आई थी। उसके आश्चर्य की सीमा नहीं थी- कठफोड़वा का जोड़ा अपने को समेटकर आकाश में उड़ा था और पीपल की डाल पर जा बैठा था। नर कठफोड़वा मादा के साथ अपनी चोंच से मोटी डाल को खोद रहा था।
:- अनंत कुमार सिंह