करीबन ५:३० बजे मैं और मेरे दोस्त नदी की ओर घूमने गए। जाड़े का दिन था।रात जल्दी होती है, ये हमें मालूम था। करीबन 15 मिनट में हम लोग नदी के किनारे पहुंचे। शाम धीरे-धीरे काली हो रही थी। हम लोगों ने नदी के किनारे बने सीढ़ी पर बैठकर अपने दोनों पैरों को नदी में डाल दिया। मेरे लाख मना करने के बावजूद भी, भाई ठंड का दिन है.. पैर पानी में मत डालो। लेकिन दोस्ती में हरामीपन ना हो तो मजा नहीं आता ।उन्होंने अपने पांव के साथ मेरे पांव की डलवा ही दिया। हम कुछ देर पानी में पैर डाले, आसमान को देख रहे थे। ठीक उसी वक्त एक दोस्त मोहन कह रहा था-" कि जानती हो मेरे पापा विदेश से मेरे लिए ढेर सारे बड़े-बड़े चॉकलेट के डिब्बे भेज दिए हैं। उसी के बीच एक दोस्त ने हंसी उड़ाते हुए कहा-"अच्छा! तुम्हारे पापा ने चॉकलेट नहीं भेजे हैं... सिर्फ चॉकलेट के डिब्बे भेजे हैं। सारे दोस्त ने उस पर हंस दिया और वह चुप हो गया।
वक्त के साथ-साथ ,धीरे-धीरे चांद निकल रहा था और वहीं बैठकर हम चांद को देखते जा रहे थे। कुछ देर बाद तीन दोस्त मुझे ये कह कर चले गए हैं -"कि यार हम बाथरूम जा रहे हैं, कुछ देर में हम आते हैं ।
मैंने कहा -"ठीक है जाओ "।मैं वहीं बैठ कर चांद को देखता रहा। बहुत देर इंतजार करने के बाद मेरे दोस्त वापस नहीं लौटे। मैं जोर-जोर से आवाज देने लगा -"रमेश ,मोहन कहां हो तुम सब ,पर उधर से कोई उत्तर नहीं आया। मैं चारों तरफ उसे ढूंढने लगा पर वो नहीं मिले ।जैसे-जैसे रात बढ़ती जा रही थी, वैसे- वैसे ठंड भी बढ़ता जा रहा था। मैंने सिर्फ ऊपर से एक पतली कोट पहना था और नीचे ट्राउजर ।मैंने जूते भी नहीं पहने थे जो मेरे पांव को ठंड से बचाता।..
वक्त काफी बीत चुका था। चांद पूरी तरह से निकल चुका था। थोड़ी अंधेरा कम हुई ,चांद के कारण ।
मुझे.... थोड़ा चांद की रोशनी के कारण पेड़, झाड़ियां एवं सड़क दिखाई दे रही थी। मैं धीरे-धीरे सड़क पर चलने लगा ।लेकिन किस दिशा में जा रहा था, यह मुझे पता नहीं था। मैं चलता रहा। सड़क में चलते चलते मैं सोच रहा था-" कि कहां चले गए, मेरे दोस्त । मेरा मन डरा हुआ था-" कि कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया ।मेरे मन में अजीबोगरीब क्या लूट रहे थे ।पर मन में यह भी सकारात्मक भाव उठ रहे थे कि शायद मेरे दोस्त ने मेरे साथ मजाक किया हो। और मुझे बिना बताए घर चले गए हो। बहुत ढूंढने के बाद मैंने सोचा कि हां शायद वह घर चले गए होंगे। उसके बाद मैं निश्चिंत होकर सड़क पर चलने लगा। बहुत देर चलने के बाद मुझे अपना घर नहीं मिला। मैंने सोचा कि शायद मैंने गलत दिशा तो नहीं पकड़ लिया है?
मेरे पास घड़ी नहीं था ,लेकिन वक्त के अंदाज से करीबन 9:00 गए होंगे। मैं आज घर में डांट सुनने वाला था। क्योंकि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि मैं घर से बाहर इतना देर तक बाहर घूमता रहा हूं।
अब मैं और लेट नहीं कर सकता था घर जाने के लिए। मैं वहीं सड़क पर बैठकर किसी गाड़ी के आने का इंतजार करने लगा। कुछ 15 मिनट इंतजार करने के बाद मुझे ट्रैक्टर आता दिखा। मैंने खड़ा होकर हाथ दिया। पर वह रुका नहीं,,,,,। मैं फिर वही बैठकर किसी गाड़ी का इंतजार करने लगा। ज्यादा समय नहीं हुआ, था कि मुझे एक बाइक खाली आता हुआ दिखा। फिर मैंने वही खड़ा होकर हाथ दिया, वह गाड़ी रुकी और मुझसे पूछा -"कहां जाना है बेटा?
मैंने कहा -"यही पास के गांव में जाना है नवाटाॅड। उसने मुझे गाड़ी में बैठाया और मुझे मेरे घर पर छोड़ दिया। मैंने उसका धन्यवाद किया और वह चला गया।
उसके बाद मैंने घर में देखा कि मेरे सारे दोस्त मेरा मां और बाप मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं धीरे-धीरे पांव उनकी ओर डरते हुए बढ़ा रहा था। मां ने मुझे जोर से गले लगाया और कहा -"अब से इतनी देर तक घर से बाहर रहा मैं तुम्हारी टांगे तोड़ दूंगा। मैं मुडी में हां में हां मिला दिया। उसके बाद मैंने अपनी सारी सफर की कहानी मां और बाप को सुनाएं।
बस इतनी थी मेरे इस नदी के सफर की कहानी।। दोस्तों आप इस कहानी को पढ़िए। और मुझे कमेंट में जरूर बताइए कि यह कहानी आपको कैसी लगी ताकि मैं आपके लिए और ऐसी बेहतरीन कहानियां लिख सको।
धन्यवाद!