बकरा कटने का लाइन काफी कम थी । मैं भी लाइन में खड़ा हो गया और पिताजी यह कहकर चले गए कि मैं घर से आता हूं । जैसे-जैसे शाम बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे लाइन एवं भीड़ और बढ़ती जा रही थी। मेरा लाइन पीछे होता जा रहा था। क्योंकि हमारे प्रखंड की एक खास बात यह है कि एक गांव का व्यक्ति कहीं लग गया तो उसके पीछे पूरा गांव लग जाता है। 10:00 बजे तक लाइन कम से कम आधा किलो मीटर लग चुकी थी। और लाइन रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी । हम वहां करीबन 5 घंटे तक खड़े थे बिना कुछ खाए -पिए। एकदम शांत! काली मंदिर के पास बकरा की बलि 12:00 बजे से प्रारंभ होने वाली थी। मतलब कि 2 घंटे हमें और खड़े होने थे। कहा जाए तो 2 घंटे सिर्फ प्रारंभ के लिए, और कितनी देर खड़े रहना था यह मुझे पता नहीं था। अंदर जाने के दो रास्ते थे। पहला आम सा गेट और दूसरा वीआईपी गेट। हम वीआईपी गेट में थे। जिसका टिकट का प्राइस था ₹200 अंदर जाने का और एक ₹100 बकरे के बलि देने का। इतनी भीड़ थी वहां कि मुझे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। पैर में मेरे पूरी तरह से धूल लग चुकी थी। पर किसी तरह मैं 12:00 बजे तक वहां खड़ा रहा। 12:00 बजे बकरे का बलि देना प्रारंभ हो गया। 1 घंटे खड़े होने के बाद देखा कि मैं वहीं खड़ा हूं ।क्योंकि आगे सब घूस रहे थे। सिस्टम से कोई जा ही नहीं रहा था । मैंने भी सोचा -"भाई ऐसे काम नहीं चलेगा । मैं भी बकरे को गोद में उठाए मंदिर में प्रवेश कर गया । अंदर जाते ही में भोचक सा रह गया । क्योंकि मंदिर के अंदर भी लंबी लाइन लगी हुई थी। किसी तरह मैंने अपने बकरी का बली अपने भाई और भाभी के नाम से दिया। और उस भीड़ से बाहर निकला। उसके बाद एक खुली पेड़ के पास लंबी लंबी सांसे लेने लगा। पिताजी ने बकरी को बोरे में डाला और हम दोनों करीबन साढें 2:00 बजे घर लौट आए।
काली पूजा
January 22, 2023
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परीक्षा खत्म हो चुकी थी। मैं हाॅस्टल आते ही अपना फोन देखा । फोन में दो मिस्ड कॉल आए हुए थे- मेरे भाई का। मैंने कॉल किया और पूछा- " भाई कॉल किया था आपने। भाई ने जवाब दिया मैं घर जा रहा हूं, तू भी चलेगा क्या?" मैंने तुरंत रिप्लाई दिया हां भाई मैं भी चलूंगा । दरअसल मेरा भाई भी शहर में रहकर पढ़ाई करता है । 2 घंटे के बाद मेरा भाई मुझे लेने आया। मैंने प्राचार्य को एप्लीकेशन लिखा और भाई के साथ बाइक में घर की ओर चल दिया । करीबन साढ़े एक घंटे में हम घर पहुंच गए। जैसे हम घर पहुंचे हमें हमारा काम मिल गया। पिताजी ने बड़े भाई से कहा -"जाकर मौसी के लिए आओ और मुझे काम मिला रात भर एक जगह खड़े होने का। मैं और पिताजी शाम के 5:30 बजे काली मंदिर के पास बकरे की बलि देने के लिए चले गए । वहाॅं पहुॅंचते मैंने देखा की मंदिर का कुछ ज्यादा ही विकास हो चुका है। अंदर में विकास हुआ है या नहीं? यह मैं नहीं जानता था! क्योंकि मैं अंदर कभी गया ही नहीं। चारों तरफ बांस से एक सुरक्षा दी गई थी । इससे पहले मैं कभी भी काली पूजा में मंदिर बकरे को बलि देने नहीं गया। हमेशा मेरा भाई जाया करता था। लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं, बच्चे को जिम्मेदारी देना शुरू कर दिया जाता है ।
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