और आज फाइनली होली है ।सारे परिवार का एक साथ होना अच्छा लगता है । सुबह से इसकी तैयारी शुरु हो गई। शोर-गुल पुरे गांव में मच रहा था। अचानक 4 औरत अंदर आ गई और मुझे माट्टी- गोबर से ऐसा पोथा जैसे मानो दीवार में गोबर पोथ रहे हो।सारे औरतों ने चिल्लाकर कहा-" होली मुबारक हो "। हालांकि में उन लोगों को उतना अच्छा से पहचानता नहीं था ।...कमाल की बात है ना ..अपने ही गांव की औरतों को ना पहचान ना। मेरे लिए कोई अजीब बात नहीं। लेकिन शायद आपके लिए हो ।
मैं होली के त्यौहार से दूर रहता हूं। खासकर शोरगुल से । इसमें मेरी ही वजह है । मेरी परवरिश ही ऐसी हुई हुई है ।पूरी जिंदगी मैं हॉस्टल लाइफ जिया हूं। इसी कारण गांव मैं ज्यादा वक्त नहीं बिता पाया । जिसका परिणाम मेरे सामने हैं। छोड़िए इन सब बातों को। त्यौहार की बात करते हैं। मेरा पूरा बिस्तर खराब हो चुका था । मैंने झूठी मुस्कान दिखा कर कहा-" क्या भाभी"। मैंने यहां भाभी का इस्तेमाल इसलिए किया है क्योंकि होली में आमतौर पर भाभी ही रंग लगाती है। सबने कहा -"क्या रे! आज होली है और आज भी तुम रूम में ही रहेगा ।
यह कहकर सब चले गए। मैं सीढ़ियों से नीचे उतरा तो देखा , मेरी अपनी भाभी नहा-धोकर पकोड़े बना रही थी ।मैं चौक गया ।इतना सुबह कौन नहाता हैं..!
फिर मैं रोड की ओर निकल पड़ा। रोड में एक अलग ही खलबली थी। सारे बूढ़े, बच्चे ,जवान रंग से नहीं खेल रहे थे, वे सारे नाली के कचरे से होली खेल रहे थे। दूर से यह देखते ही मैं रोड की ओर गया ही नहीं। और घर वापस लौट आया।